जय मां राजराजेश्वरी आज हम बात करेंगे शारीरिक बाधा हटाने वाले वनष्पति तन्त्र के विषय मे
युर्वेद में स्वास्थ्य लाभ देने वाली बहुमूल्य औषधियों का खजाना है। हमारे आस-पास उगने वाली घास व पेड़-पौधे सामान्य होते हुए भी असामान्य गुणों से युक्त होते हैं, जानकारी के अभाव में हम उनका सदुपयोग नहीं कर पाते। प्रस्तुत आलेख में जड़ी बूटियों की जीवनदायिनी शक्ति का परिचय दिया गया है...
हमारे देश में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। हम पूरी तरह से वनस्पतियों पर ही निर्भर हैं। इनका प्रभाव पोषक, प्राण् ादायक और विष दायक भी होता है। आयुर्वेद और तंत्र शास्त्र में इनके असंख्य प्रयोग बतलाए गए हैं।
संबंधित वनस्पति लाने और प्रयोग करने के पूर्व ‘‘ऊँ नमः शिवाय या ऊँ नमश्चण्डिकायै’’ का उच्चारण कर अपने इष्ट देवता का स्मरण करना चाहिए। तंत्र में रवि पुष्य नक्षत्र को अति प्रधानता दी गई है अतः वन¬स्पति तंत्र का प्रयोग इसी नक्षत्र में करें तो उत्तम रहेगा। तंत्र साधना के लिए मेष, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर और कुंभ शुभ लग्न हैं। अतः इन्हीं लग्नों में अपना प्रयोग करें। दिन और समय अर्थात मुहूर्त के निश्चित हो जाने के एक दिन पहले उस वनस्पति के पास जा कर उसे देवता की तरह प्रणाम करके कहें मम कार्य सिद्धि कुरू-कुरू स्वाहा। फिर उस रोली, अक्षत, धूप, चंदन, दीपक आदि से पूजन करके एक कालावा बांध कर पुनः कहें हे ! वनस्पति देवी मैं अपने काम से आप को लेने प्रातः काल आऊंगा मेरे साथ चल कर मेरी मदद करें। यह क्रिया संध्या के समय 3 बजे से 5 बजे के मध्य करें जब भगवान सूर्य अस्त न हुए हों। अगले दिन उस वनस्पति को लाकर गंगा जल से धोकर धूप, दीप, अक्षत, रोली आदि से पूजन करके प्रयोग करें।
अपामार्ग या चिरचिंटा लटजीरा तंत्र:
इस वनस्पति को रवि-पुष्य नक्षत्र मे लाकर निम्न प्रयोग कर सकते हैं।
1. इसकी जड़ को जलाकर भस्म बना लें। फिर इस भस्म का नित्य गाय के दूध के साथ सेवन करें, संतान सुख प्राप्त होगा।
2. लटजीरे की जड़ अपने पास रखने से धन लाभ, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है।
3. इसकी ढाई पत्तियों को गुड़ में मिलाकर दो दिन तक सेवन करने से पुराना ज्वर उतर जाता है।
4. इसकी जड़ को दीपक की भांति जला कर उसकी लौ पर किसी छोटे बच्चे का ध्यान केन्द्रित कराएं तो उस बच्चे को बत्ती की लौ में वांछित दृश्य दिखाई पड़ेंगे।
5. इसकी जड़ का तिलक माथे पर लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न हो जाता है।
6. इसकी डंडी की दातून 6 माह तक करने से वाक्य सिद्धि होती है।
7. इसके बीजों को साफ करके चावल निकाल लें और दूध में इसकी खीर बना कर खाएं, भूख का अनुभव नहीं होगा।
सहदेवी तंत्र: सहदेवी सामान्य घास-फूस की श्रेणी की वनस्पति है। तांत्रिक दृष्टि से यह अद्भुत गुणों से युक्त अमूल्य वनस्पति है। इसकी जड़ रवि-पुष्य नक्षत्र में लाकर निम्न मंत्र से 108 बार पूजा करें।
मंत्र: ¬ नमो रूपावती सर्वप्रोतेति श्री सर्वजनरंजनी सर्वलोक वशीकरणी सर्व सुखरंजनी महामाईल घोल थी कुरू कुरू स्वाहा।
1. सहदेवी की जड़ लाल कपड़े में बांधकर अन्न भंडार, तिजोरी या किसी अन्य सम्पत्ति के साथ रखने से उसमें वृद्धि होने लगती है।
2. इसकी जड़ लाल डोरे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव वेदना से मुक्ति मिलती है।
3. इसके पत्ते, तना, फूल, जड़ और फल पीस कर पान में खिलाने से वह व्यक्ति वशीभूत हो जाएगा।
4. इसके पंचांग का तिलक लगाने से समाज में सम्मान एवं प्रभाव में वृद्धि होती है।
5. बच्चों के गले में सहदेवी की जड़ पहनाने से कंठमाला रोग दूर हो जाता है।
ग्रह पीड़ा निवारक मूल-तंत्र:
सूर्य: यदि कुंडली में सूर्य नीच का हो या खराब प्रभाव दे रहा हो तो बेल की जड़ रविवार की प्रातः लाकर उसे गंगाजल से धोकर लाल कपड़े या ताबीज में धारण करने से सूर्य की पीड़ा समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे, बेल के पेड़ का शनिवार को विधिवत पूजन अवश्य करें।
चंद्र: यदि चंद्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो सोमवार को खिरनी की जड़ सफेद डोरे में बांध कर धारण करें। रविवार को इस वृक्ष का विधिवत पूजन करें।
मंगल: यदि मंगल अनिष्ट फल दे रहा हो तो अनंत मूल या नागफनी की जड़ लाकर मंगलवार को धारण करें।
बुध: यदि बुध अनिष्ट फल दे रहा हो तो विधारा की जड़ बुधवार को हरे डोरे में धारण करें।
गुरु: यदि गुरु अनिष्ट फल दे रहा हो तो हल्दी या मारग्रीव केले (बीजों वाला केला) की जड़ बृहस्पतिवार को धारण करें।
शुक्र: यदि शुक्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो अरंड की जड़ या सरफोके की जड़ शुक्रवार को सफेद डोरे में धारण करें।
शनि: यदि शनि अनिष्ट फल दे रहा हो तो बिच्छू (यह पौधा पहाड़ों पर बहुतायत में पाया जाता है) की जड़ काले डोरे में शनिवार को धारण करें।
राहु: यदि राहु अनिष्ट फल दे रहा हो तो सफेद चंदन की जड़ बुधवार को धारण करें।
केतु: यदि केतु अनिष्ट फल दे रहा हो तो असगंध की जड़ सोमवार को धारण करें।
मदार तंत्र: श्वेत मदार की जड़ रवि पुष्य नक्षत्र में लाकर गणेश जी की प्रतिमा बनाएं और उसकी पूजा करें, धन-धान्य एवं सौभाग्य में वृद्धि हा¬ेगी। यदि इसकी जड़ को ताबीज में भरकर पहनें तो दैनिक कार्यों में विघ्न बहुत कम आएंगे और श्री सौभाग्य में वृद्धि होगी।
निर्गुंडी तंत्र: निर्गुंडी एक सुलभ वन¬स्पति है लेकिन यह अच्छा तांत्रिक प्रभाव रखती है। रवि पुष्य योग से सात दिन पहले इस पौधे को निमंत्रण दे आएं। फिर रवि पुष्य में पूरा पौधा उखाड़ कर घर ले आएं। एक माला- ¬ नमो गणपतये कुबेरये काद्रिक पफट् स्वाहा। मंत्र पढ़कर पौधे को अभिषिक्त करें और फिर उसे लाल कपड़े में बांधकर पूजन स्थल पर रखें।
प्रयोग: पीली सरसों के समूचे पौधे को पीले वस्त्र की पोटली में बांधकर दुकान के द्वार पर लटकाने से व्यापार में निरंतर वृद्धि होती है।
आयु वर्धन के लिए इसके चूर्ण का प्रतिदिन सेवन करें।निर्गुंडी का चूर्ण दूध या जल के साथ सेवन करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।इसके चूर्ण के सेवन से ज्वर का नाश होता है।
गोरखमुंडी तंत्र: मुंडी एक सुलभ वनस्पति है । इसम अलौ किक औ षधीय एवं तांत्रिक गुणों का समावेश है। इसे रवि पुष्य नक्षत्र में पहले निमंत्रण दे कर ले आएं।
पूरे पौधे का चूर्ण बनाकर जौ के आटे में मिलाएं। फिर उसे मट्ठे म सान कर रोटी बनाएं और गाय के घी के साथ इसका सेवन करें, शरीर के अनेक दोष जिनमें बुढ़ापा भी शामिल है, दूर हो काया कल्प हो जाएगा और शरीर स्वस्थ, सबल और कांतिपूणर्् ा रहेगा।हरे पौधे के रस की मालिश करने से शरीर की पीड़ा मिट जाती है।इसके चूर्ण का सेवन दूध के साथ करने से शरीर स्वस्थ एवं बलवान हो जाता है।इसके चूर्ण को रातभर जल के साथ भिगो कर प्रातः उससे सिर धोने से केशकल्प हो जाता है।इसके चूर्ण का नित्य सेवन करने से स्मरण, धारण, चिंतन और वक्तृत्व शक्ति की वृद्धि होती है।
श्रीफल: नारियल की एक छोटी जाति होती है। इसके फल बहुत छोटे होते हैं। यह खाने के काम नहीं आता परंतु इसकी बनावट बड़े नारियल की तरह होती है। इस श्रीफल नाम के छोटे नारियल को श्री समृद्धि एवं आर्थिक संपन्नता के लिए काफी प्रभावशाली माना गया है। इस श्री फल का किसी शुभ नक्षत्र में षोडशोपचार पूजन करके ‘‘¬ श्रीं श्रियै नमः मंत्रा का 21 माला जप करें। फिर इसके दशांश हवन करें। हवन के बाद ब्राह्मण को भोज कराएं। फिर श्रीफल को चांदी के एक डिब्बे में रख दें। अब प्रतिदिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार 1, 5, 7 या 9 माला जप नित्य किया करें, आर्थिक मामलों में चमत्कारी लाभ का अनुभव करेंगे।
एकाक्षी नारियल (एक आंख वाला नारियल): तंत्रशास्त्र में एकाक्षी नारियल का बहुत महत्व है। इसे लाल वस्त्र में लपेट कर लक्ष्मी-गणेश की भांति इसका नित्य षोडशोपचार विधि से पूजन करें सुख सम्पत्ति में वृद्धि होगी।
नाग केसर: नाग केसर का दाना तांत्रिक दृष्टि से समृद्धिदाता माना गया है। रवि पुष्य या गुरु पुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में साबुत हल्दी, अक्षत, चांदी का टुकड़ा या सिक्का एवं नाग केसर के दाने रख कर पोटली बनाएं। फिर इसकी षोडशोपचार पूजा करके नित्य धूप देते रहें। इस प्रयोग से दरिद्रता समाप्त हो जाएगी और आर्थिक विषयों में अत्यधिक लाभ होगा।
श्यामा हरिद्रा: काली हल्दी को ही श्यामा हरिद्रा कहते हैं। इसे तंत्र शास्त्र में गणेश-लक्ष्मी का प्रतिरूप माना गया है। श्यामा हरिद्रा को रवि पुष्य या गुरु पुष्य नक्षत्र में लेकर एक लाल कपड़े में रखकर षोडशोपचार विधि से पूजन करने का विधान है। इसके साथ पांच साबुत सुपारियां, अक्षत एवं दूब भी रखने चाहिए। फिर इस सामग्री को पूजन स्थल पर रखकर प्रतिदिन धूप दें। यह पारिवा¬रिक सुख में वृद्धि के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी लाभ देता है।
हत्था जोड़ी: यह एक वनस्पति है। इसके पौधे मध्य प्रदेश में बहुतायत में पाए जाते हैं। इस पौधे की जड़ में मानव भुजाएं जैसी ही शाखाएं हा¬ेती हैं। इसे साक्षात् चामुंडा देवी का प्रतिरूप माना गया है। इसका प्रयोग सम्मोहन, वशीकरण, अनुकूलन, सुरक्षा एवं संपत्ति वृद्धि आदि में होता है।
प्रयोग विधि: रवि पुष्य नक्षत्र में हत्था जोड़ी लेकर उसे स्नान करा कर लाल वस्त्र में लपेट कर रख दें। फिर एक घंटे बाद उसे तिल के तेल में डुबोकर पवित्र स्थान में रख दें। फिर 21 दिनों बाद किसी शुभ नक्षत्र में इसे तेल से निकाल कर सिंदूर, कपूर, लौंग, तुलसी पत्र, अक्षत एवं चांदी का टुकड़ा रखकर इसकी पूजा षोडशोपचार विधि से करें। फिर ‘‘¬ ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे’’ मंत्र का 51 या 101 माला जप करें। फिर जप के दशांश हवन, तर्पण, मार्जन, आदि करके ब्राह्मण को भोजन कराएं। फिर नित्य अपने सामथ्र्य के अनुसार मंत्र का जप करते रहें। यह अति प्रभावशाली फल देने में समर्थ है।
ग्रह बाधा हरण के लिए: रवि पुष्य नक्षत्र में पलास की बारह अंगुल लंबी लकड़ी निम्न मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित कर के जिी स मकान में गाड़ दी जाए उसमें रहने वाले सदा निर्विघ्न रहेंगे।
ऊँ शं शां शीं शुं शूं शें शैं शों शौं श शः स्वः सं स्वाहा।
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