जय मां राजराजेश्वरी आज हम बात करेंगे मन्त्रों की शक्ती केविषय में
संसार में एक मात्र सत्य सनातन भारतीय हिंदू संस्कृति ही ऐसी है जिसमें मंत्राराधना तथा प्रार्थना के द्वारा जीवन की समस्त समस्याओं को सान्त्वना मिलती है। यहां तक कि जन्म जन्मांतर के दोषों का समाधान भी मंत्राराधना द्वारा किया जा सकता है। मंत्रों के द्वारा ही दुख दारिद्य रोग शत्रुभय से लेकर विषम से विषम समस्याओं का समाधान मंत्राराधना से किया जा सकता है।
अर्थात् धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ मंत्र साधना से प्राप्त किया जाता रहा है। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने साधना द्वारा ही ब्रह्ममांड विनायक जगनियंता परम पिता परमात्मा का साक्षात्कार करके संसार को समृद्धिशाली बनाने के लिये बेद वेदांग तथा अनेक शास्त्रों की महती संरचना की है। उन्होंने किसी यांत्रिक क्रिया से अखिल ब्रह्मांड की संरचना को उजागर नहीं किया।
ब्रह्मांड से समस्त रहस्य उन्होंने साधना आराधना तथा मंत्र शक्ति के बल पर ही आत्मानुभूति द्वारा सहज संभाव्य कर दिया है। प्रकृति की दिव्यता में ही परमात्म के विराट स्वरूप के दर्शन उन्होंने किये हैं। प्रकृति की अनुकंपा तथा प्रकोप को शांत करने के लिये मंत्राराधना उनकी सहज प्रक्रिया थी।
यहां तक कि भाषा के स्वर और व्यंजन का एक-एक अक्षर मंत्र का काम करता है फिर मंत्रों की महिमा तो महान् है। सृष्टि के शुभारंभ से ही हमारे मंत्रद्रष्टा मनीषियों ने समयानुसार पूरे सम्वत्सर में उत्सवों की परंपरा में मंत्रों तथा साधना का लाभ स्वाभाविक रूप में प्राप्त करने की रीति रिवाज प्रस्थापित करके मानव मात्र का उपकार कर दिया है।
जैसे बासंतिक तथा शारदीय नवरात्र के समय शक्ति की साधना करके जनकल्याणकारी अनिवार्यता हमारे जन-जन की भावना में समाया है। चार्तुमास में संसार का कल्याण करने वाले सदाशिव की आराधना प्रार्थना साधना करके हम लाभान्वित होकर जीवनोत्कर्ष प्राप्त करते हैं।
आर्थिक प्रभाव का समाधान करने के लिये हम जगमाता मां महालक्ष्मी की पूजा-आराधना करते हैं। श्रीसूक्तादि श्रेष्ठ स्तोत्रों का पठन-पाठन करते हैं। इसी प्रकार जातक के जन्मांगों में आई जटिल समस्याओं के समाधान के लिये ग्रहदाशाओं को दूर करने के लिये ग्रहों के मंत्रों का जप साधना दान उपाय आदि किया जाता है।
ब्रह्मांड से समस्त रहस्य उन्होंने साधना आराधना तथा मंत्र शक्ति के बल पर ही आत्मानुभूति द्वारा सहज संभाव्य कर दिया है। प्रकृति की दिव्यता में ही परमात्म के विराट स्वरूप के दर्शन उन्होंने किये हैं। प्रकृति की अनुकंपा तथा प्रकोप को शांत करने के लिये मंत्राराधना उनकी सहज प्रक्रिया थी।
यहां तक कि भाषा के स्वर और व्यंजन का एक-एक अक्षर मंत्र का काम करता है फिर मंत्रों की महिमा तो महान् है। सृष्टि के शुभारंभ से ही हमारे मंत्रद्रष्टा मनीषियों ने समयानुसार पूरे सम्वत्सर में उत्सवों की परंपरा में मंत्रों तथा साधना का लाभ स्वाभाविक रूप में प्राप्त करने की रीति रिवाज प्रस्थापित करके मानव मात्र का उपकार कर दिया है।
जैसे बासंतिक तथा शारदीय नवरात्र के समय शक्ति की साधना करके जनकल्याणकारी अनिवार्यता हमारे जन-जन की भावना में समाया है। चार्तुमास में संसार का कल्याण करने वाले सदाशिव की आराधना प्रार्थना साधना करके हम लाभान्वित होकर जीवनोत्कर्ष प्राप्त करते हैं।
आर्थिक प्रभाव का समाधान करने के लिये हम जगमाता मां महालक्ष्मी की पूजा-आराधना करते हैं। श्रीसूक्तादि श्रेष्ठ स्तोत्रों का पठन-पाठन करते हैं। इसी प्रकार जातक के जन्मांगों में आई जटिल समस्याओं के समाधान के लिये ग्रहदाशाओं को दूर करने के लिये ग्रहों के मंत्रों का जप साधना दान उपाय आदि किया जाता है।
शिव-शक्ति की उपासना में संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी तथ्य दुर्गा सप्तशती, समस्त समस्याओं के समाधान के लिये सक्षम है।
आवश्यकतानुसार मंत्रों का चयन करके उनके सवात्नक्षीय मंत्र जप से साधक इच्छा लाभ उठाते रहते हैं। मंत्र महोदधि की महिमा अनन्त है। हम उन्हीं कतिपय मंत्रों का विवरण विश्वास पूर्वक दे रहे हैं।
आवश्यकतानुसार मंत्रों का चयन करके उनके सवात्नक्षीय मंत्र जप से साधक इच्छा लाभ उठाते रहते हैं। मंत्र महोदधि की महिमा अनन्त है। हम उन्हीं कतिपय मंत्रों का विवरण विश्वास पूर्वक दे रहे हैं।
जिनके द्वारा से हम जनकल्याण की भावना से पीड़ित जनों को लाभान्वित किया जाता रहा है। मंत्र साधना में श्रद्धा विश्वास तथा नियम पूर्वक रहकर समर्पण भावना से साधन करना परमावश्यक है।
पहला सुख निरोगी काया
के सिद्धांत को मानते हुये स्वास्थ्य की सुरक्षा सर्व प्रथम है। स्वास्थ्य लाभ के लिये महामृत्युंजय तथा मृत संजीवनी का प्रयोग करना चाहिये, महामृत्युंजय के भी कई उच्चारण सम्पुट भेद ऋषि-मुनियों द्वारा माने गये हैं जैसे ‘‘ॐ हौं ॐजूं सः भुर्भुवः स्वः त्रयम्बकं यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात।। ॐभुर्भुवः स्वः जूं सः ह्रौं ॐ ।।’’
सामान्यतया रुद्राष्टाध्यायी में मूल मंत्र के श्लोक को इसक प्रकार सम्पुटित किया जाता है। ‘‘ॐहौं जूं सः ॐ भूर्वुवः स्वः त्रयम्बकं यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात।। स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौ ॐ।। श्लोक के साथ सम्पुट की विशेषता ही महामंत्र है। केवल मूल मंत्र में ‘‘ॐहौं जूं सः ।’’ का अधिकाधिक जप किया जाता है तो अच्छे परिणाम सामने आते हैं।
मृत संजीविनी मंत्र के लिये अपने स्वयं के लिये निम्न प्रयोग किया जाता है। ‘‘ॐनमो भगवती मृत संजीविनी ‘मम’ रोग शान्ति कुरु कुरु स्वाहा।’’ दूसरों के लिये रोगी व्यक्ति का नाम गोत्र नाम उच्चारण प्रत्येक मंत्र के साथ किया जाना चाहिये।
मंत्रों के साथ आवश्यकतानुसार मृत्युंजय स्तोत्रों का पाठ अनुष्ठानों को विशेष बल प्रदान करने वाला होता है। इसमें अनुभवी विद्वानों द्वारा प्रेरित निर्दिष्ट होकर ही प्रयोग करना चाहिये। बिना विधि के परिचय विना प्रयोग प्रतिकूल फलदायी भी हो जाते हैं।
‘‘दूजा सुख घर में हो माया।’’ के अनुसार घर में सुख-समृद्धि के लिये स्तोत्र-मंत्र साधना निरंतर करनी चाहिये। प्रभावों से बचने के लिये समृद्धि की देवता महालक्ष्मी की उपासना करनी चाहिये। आर्थिक संपन्नता के लिये भी सूक्त, कनकधारा महालक्ष्मी स्तोत्र, श्री गोपाल सहस्रनाम स्तोत्र, ललिताम्बा, त्रिपुरसुंदरी आदि स्तोत्रों का नित्य नैमित्यिक घरों तथा प्रतिष्ठानों में किया जाना ही चाहिये।
विशेषतः ऋणहरण गणेश स्तोत्र तथा मंत्र जप ऋण विमुक्ति का वरदान देता रहता है। केवल मंत्र का पुरश्चरण भी पर्याप्त होता है। मंत्र: ॐ गौं गणेशं ण छिन्दि वरेण्यं हुं नमः फट्।’’ का विधिवत सवा लाख जप के साथ घर में हवन करें।
प्रतिष्ठान में हवन न करें
प्रतिष्ठान में हवन न करें
तीजा सुख बैठन को छाया’’ के अनुसार भी हनुमान भगवान की उपासना, मंगलस्तोत्र का पाठ जप हितकर होता है। श्री हनुमान जी की उपासना में श्री हनुमान चालीसा के सवा लाख पाठ तथा श्री वज्रंग वंदना एवं वज्रांग विनय स्तोत्रों का सहारा लेना चाहिये। प्रति मंगलवार को व्रत करें अथवा वन्दरों को केले-चने अथवा नमकीन वस्तु खिलानी चाहिये।
श्री वाल्मीकि रामायण का श्री हनुमद् उद्घोष जप करना चाहिये। श्री हनुमान अष्टक भी सर्व विघ्नों के शमन के लिये उपयोगी है।
चैथा सुख"" सुयोग सन्तति"" का माना गया है। इसके लिये भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना करनी चाहिये। संतान गोपाल मंत्र तथा स्तोत्र के साथ श्री हरिवंशमहापुराण का किसी सिद्ध वक्ता से करना चाहिये। सन्तान प्राप्ति के लिये। ‘‘देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्णं तामहं शरणंगतः।।’’ का मंत्र जाप सर्वोपयोगी है।
संतान की उत्पत्ति पैत्रिक ऋण से उऋण करती है। इसके अतिरिक्त जीवन में अनेक प्रभाव तथा समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
जन्मांगों, महादशाओं के दुष्प्रभावों के कारण व्यक्ति हताश होकर तिलमिला जाता है। राज्यकार्यों में असफलता की स्थिति में राज्य में विजयार्थ महामंत्रों का सहारा लेना पड़ता है। हमारे शास्त्रों में सभी महाकष्टों के उपाय तथा मंत्र उपस्थित है।
जीवन में बहुत सी समस्यायें ऐसी आ जाती हैं जिनको सुलझाना कठिन हो जाता है। उनके लिये अन्ततः मंत्र शक्ति का सहारा लेना पड़ता है। जैसे विवाह विलंब, राज्य कार्यों में सफलता, खेल के मैदान में विजय, रोजगार में बंधन के कारण काफी असफलता, शत्रुबाधा, गृह कलह आदि में शांति समाधान। इन सभी के लिये विभिन्न मंत्रों स्तोत्रों तथा उपायों का सहारा लिये बिना सफलता नहीं मिलती है। अतः उनके लिये अनुभवी सज्जनों का निर्देशन आवश्यक है।
पुस्तकों का परामर्श ही पर्याप्त नहीं होता। कभी-कभी मंत्रों का विपरीत प्रभाव हो जाता है अतः विधि विशेषज्ञता अवश्य समझनी आवश्यक है।
पुस्तकों का परामर्श ही पर्याप्त नहीं होता। कभी-कभी मंत्रों का विपरीत प्रभाव हो जाता है अतः विधि विशेषज्ञता अवश्य समझनी आवश्यक है।
संस्कृत के अतिरिक्त हमारे शाबर मंत्र बड़े मुटपटे होते हैं और तत्काल वृत्त फल देते हैं। श्री राम चरित मानस की सभी चैपाइयों को शाबर मंत्र मानना चाहिये। सकल जन साधारण अपने अटके कामों की सफलता के लिये श्री राम चरित मानस का अखंड पाठ करते कराते हैं। उन्हें अपने उद्देश्य की सहज सफलता प्राप्त हो जाती है।
आवश्यकतानुसार चैपाइयों का स्वतंत्र जप करने से उद्देश्य सफल हो जाते हैं। हमारे मनीषी ऋषियों द्वारा प्रदत्त अनन्त साहित्य समृद्धि हमारे पास है।
उसको समझकर तथा आवश्यकतानुसार सुधार करके हमारे ज्योतिष कार्यालय में सदाचारी विद्वानों द्वारा हम अनेक प्रयोग करते, करवाते हैं जिनमें हमें आशातीत सफलता प्राप्त हुई है। हमारे सभी प्रयोग सत्य सनातन शास्त्रानुसार सात्विक सरल सदाचरित और सिद्धिदायक होते हैं। यही हमारी सत्य सैद्धांतिक सारगर्भित सफल सिद्धि निष्ठा है। मंत्रों में हमारा पूर्ण विश्वास है। (विश्वासं फलदायकं )
हमारे सन्सथान में प्रसिद्ध भागवत कथा वक्ता है .पं विद्याधर जी शास्त्री श्री धाम वृन्दावन ...जिनके द्वारा संगीतमय श्री मद्भागवत कथा का आयोजन करवानें के लिये सम्पर्क करें
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