जय मां राजराजेश्वरी आज हम बात करेंगे वृक्ष व पौधों को वास्तु के अनुसार लगाने के विषय मे
वास्तु शास्त्र के अनुसार विभिन्न ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिये मूल्यवान रत्नों के उपयोग के स्थान पर पौधों की जड़ों का उपयोग किया जाना चाहिये। यदि कोई वृक्ष वास्तु दोष भी बना रहा हो तो केवल वास्तु दोष समझ कर ही उस वृक्ष को काट नहीं देना चाहिये। बल्कि सही स्थान पर सही प्रकार के वृक्ष लगाने का प्रयास करना चाहियें।
वक्षों व पौधों का मानव व मानव जीवन से अटूट रिश्ता रहा है क्योंकि वृक्ष व पौधे ही जीवनोपयोगी ऑक्सीजन देकर मानव को जीवन देते हैं। केवल बढते हुये प्रदूषण को ही नहीं बल्कि जलवायु एवं वातावरण के संतुलन में भी वृक्षों का योगदान सर्वोपरि है।
वृक्ष परमात्मा की दी हुई वह अदभुत वस्तु है जो मानव के रोजमर्रा के जीवन में धनात्मक ऊर्जा देने का बहुत महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। वृक्ष मानव को वह शक्ति देते हैं जो उसके जीवन में शांति व समृद्धि के लिये नितांत आवश्यक है। जीवित प्राणियों के लिये वृक्षों का होना परमावश्यक है। वृक्षों से जीवन में रंग आता है, वातावरण ठंडा व शांत रहता है, प्रदूषण दूर होता है, सुरक्षा की भावना मिलती है, स्वास्थ्य लाभ मिलता है, विश्वास को शक्ति मिलती है। वृक्षों के बिना घर अधूरा है। वृक्षों को बच्चों की तरह से ही पालना चाहिये।
हमारे शास्त्रों में भी वृक्षों की महता व उपयोगिता का वर्णन बखूबी किया गया है। शास्त्रानुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला, पांच आम व दस इमली लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है तथा कभी नरक के दर्शन नहीं करता। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति वृक्ष लगाता है वह परमात्मा का सहायक होता है क्योंकि भगवान वृक्षों को बहुत प्रेम करते हैं।
वास्तु शास्त्र का भी यह उद्देद्गय है कि प्रकृति की वस्तुओं (सूर्य, भूमि वायु, प्रकाश, वृक्ष, जल आदि) का उपयोग कर किस प्रकार मानव जीवन को सुखी व समृद्ध बनाया जा सके। वृक्षों एवं पौधों का वास्तु गृहविन्यास एवं नगरविन्यास से गहरा नाता है। ज्योतिष एवं वास्तु ग्रंथों के अनुसार सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का विभिन्न वृक्षों एवं पौधों पर आधिपत्य या अधिकार इस प्रकार से होता है :-
वास्तु शास्त्रों के अनुसार विभिन्न ग्रहों के अद्गुाभ प्रभाव से बचने के लिये मूल्यवान रत्नों के उपयोग के स्थान पर पौधों की जडों का उपयोग किया जाना चाहिये। यदि कोई वृक्ष वास्तु दोष भी बना रहा हो तो केवल वास्तु दोष समझ कर ही उस वृक्ष को काट नहीं देना चाहिये। बल्कि सही स्थान पर सही प्रकार के वृक्ष लगाने का प्रयास करना चाहियें।
वृक्षों-पौधों के स्थान व दिशा :-
किस स्थान या दिशा में कौन सा वृक्ष या पौधा लगाना चाहिये, वास्तु इस बारे में विस्तार से कहता है कि –
जासमीन, गुलाब, मेरीगोल्ड, चंपक, मोगरा के पौधे धनात्मक ऊर्जा देते हैं। इन्हें घर के आसपास पूर्व या उत्तर दिशा में अवश्य लगाना चाहिये।
पूर्व में वट का पेड़ मनोकामना पूर्ण करता है।
तुलसी का पौधा अति शुभ व शक्तिशाली माना जाता है। इसे घर के पूर्व या उतर दिशा में लगाना चाहिये। कम से कम एक तुलसी ईशान कोण में अवश्य होनी चाहिये।
ईशान में आंवला, आग्नेय में अनार, र्नैत्य में इमली व वायव्य में कैथ के पौधे लगाने शुभ हैं।
छोटे सजावटी पौधे, लॉन, झाडियां आदि उतर या पूर्व दिशा में होने चाहियें।
वाटिका बनाने के लिये पूर्व, ईशान व वायव्य दिशा शुभ रहती है। ईशान कोण की वाटिका में हल्के फूलों वाले पौधे व बेल, औषधीय पौधे जैसे तुलसी व आंवला लगाने चाहियें।
यदि शुक्र के अधीन आने वाले आम का वृक्ष लगाना हो तो इसको आग्नेय कोण में लगाना चाहिये। यदि आग्नेयकोण में कोई दोष हो तो आम का वृक्ष लगाने से दोष का परिहार होता है।
खुशबूदार वृक्ष या पौधे वायव्य कोण में लगाने चाहियें।
पश्चिम में पीपल, उतर में पाकड़ व दक्षिण में गूलर का वृक्ष अति उतम है।
यदि क्रिसमिस व बादाम के वृक्ष लगाने हों तो इनका आकार पिरामिड रूप में होने के कारण इन्हें दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाना चाहिये।
कुछ अन्य शुभ वृक्ष व पौधे इस प्रकार हैं - पपीता, अमरूद, सेब, गुलमोहर, अशोक, नीम, नारियल, चंदन, अनानास, बादाम, अनार, आंवला व तुलसी। इनमें से हल्के व छोटे पौधे पूर्व व उतर दिशा में लगाये जा सकते हैं तथा बडे़ व भारी पेड़ पश्चिम व दक्षिण दिशा में लगाने चाहियें।
वृक्षों व पौधों से संबंधित कुछ अन्य वास्तु नियम :-
वृक्षों व पौधों के बारे में कुछ वास्तु के नियम निम्न प्रकार से हैं :-
घर के मुखय द्वार पर बेल नहीं चढानी चाहिये।
घर के मध्य में कोई बडा वृक्ष नहीं लगाना चाहिये।
पूर्व व उतर दिशा में छोटे व हल्के पौधे होने चाहिये।
घर में लगाये गये वृक्षों की कुल संखया सम होनी चाहिये।
मनीप्लांट घर के अंदर लगाना चाहिये क्योंकि ये भाग्यवर्धक हैं।
बडे़ व घने वृक्ष हमेशा दक्षिण व पश्चिम दिशा में ही लगाने चाहिये।
पत्थरों के बुतों से बना उपवन भवन के र्नैत्य कोण में ही होना चाहिये।
भवन के द्वार के बिल्कुल सामने वृक्ष नहीं लगाना चाहिये। इससे द्वार वेध बनता है।
बट व पीपल के वृक्ष पवित्र माने जाते हैं इसलिये इन्हें मंदिर आदि के आसपास लगाना चाहिये।
गुलाब को छोड़कर कोई भी कांटेदार पौधा घर में नहीं लगाना चाहिये अन्यथा शत्रु परेशान कर सकते हैं।
दूधिया पौधों को घर में नहीं लगाना चाहिये क्योंकि ये भवनवासियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं तथा धन नाश करते हैं।
नींबू और घरोंदा के वृक्षों को भी घर या फैक्टरी में नहीं लगवाना चाहिये।
यदि नींबू के वृक्ष को नहीं हटा सकते तो उसके आस पास तीन तुलसी के पौधे लगा देने चाहियें।
बडे़ व घने वृक्ष भवन के बिल्कुल समीप नहीं लगाने चाहिये क्योंकि उनकी जडे़ं भवन को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
भवन की दीवारों का सहारा लेकर किसी भी बेल को नहीं लगाना चाहिये। बेल को बाग में ही किसी अन्य सहारे के बढ़ने देना चाहिये।
वृक्षों व पौधों से संबधित कुछ वास्तु सावधानियां :
वास्तु शास्त्रानुसार यदि पीपल भवन की पूर्व दिशा में हो तो घर में भय और निर्धनता व्याप्त हो सकती है।
गूलर या नींबू यदि उतर दिशा में होगा तो आंखों की बीमारी हो सकती है।
वट पश्चिम में व पाकड़ का वृक्ष दक्षिण में होना अशुभ है।
इसी प्रकार आग्नेय कोण में पीपल, पाकड़ या गूलर का पेड़ हो तो पीड़ादायक व मृत्युतुल्य कष्ट देता है।
पश्चिम दिशा में आम या वट वृक्ष होने से मुकद्दमें, औरतों-बच्चों को तकलीफ, चोरी आदि का सामना करना पडता है। पूर्व या उतर दिशा में फलदार वृक्ष होने से संतान पीड़ा व बुद्धि नाश होता है। दक्षिण दिशा में तुलसी होने से कठोर यातना व कारागार हो सकता है।
यदि शुभ वृक्ष पूर्व दिशा में हों तो भी भवन से उनकी उचित दूरी होनी चाहिये क्योंकि वृक्षों की छाया भवन पर सुबह 6 से 11 बजे तक नहीं पड़नी चाहिये। यदि ऐसा होता है तो पूर्व दिशा से आने वाली सूर्य की शुभ किरणों का लाभ नहीं लिया जा सकेगा। सूर्य की सुबह की लाभदायक किरणों को पूर्व दिशा के वृक्षों द्वारा नहीं रोकना चाहिये अन्यथा भवनवासी समृद्ध, भाग्यशाली व शांत नहीं रह सकते। दक्षिण व पश्चिम के वृक्ष भवन को दोपहर बाद की सूर्य की विनाशकारी किरणों से बचाते हैं।
सभी कांटों वाले वृक्ष व पौधे यदि घर में लगाये जायें तो ये परिजनों को चिंता व परेशानी देते हैं। घर में रोग घर कर लेता है तथा मुकददमें में हार होती है।
कांटेदार वृक्षों में से कैक्टस सबसे अशुभ है। क्योंकि इन वृक्षों के कोने ऋणात्मक ऊर्जा विसर्जित करते हैं जो भवन में रहने वालों के स्वास्थ्य व विचार शक्ति को प्रभावित कर अशुभ परिणाम लाती है।
जिन वृक्षों या पौधों के पत्तों से दूध जैसा द्रव्य निकलता हो तो ऐसे वृक्षों को भी नहीं लगाना चाहिये क्योंकि ये द्रव्य भी ऋणात्मक ऊर्जा के बहुत बडे स्रोत कहलाते हैं।
यदि किसी फलहीन वृक्ष की छाया भवन पर पडती है तो विभिन्न रोगों का सामना करना पडता है तथा अनेक विपदायें भी परेशान करती रहती हैं।
वृक्षारोपण का भी एक उचित समय होता है। इन्हें शुभ नक्षत्रों व तिथियों में ही लगाना चाहिये। शुक्ल पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक का समय वृक्षारोपण के लिये शुभ रहता है। पौधों को पहले मिटटी के गमलों में व फिर जमीन में लगाना चाहिये। ऐसा करने से उनका विकास अच्छा रहता है।
गृह के समीप यदि कांटेदार, दूध वाले आदि हानिकारक वृक्षों को निकालना संभव न हो तो इनके बीच शुभ वृक्ष जैसे अशोक, नागकेसर, शमी आदि लगाने से दोष का निवारण हो जाता है। यदि किसी भी कारण से किसी वृक्ष को निकालना आवश्यक हो जाता है तो उसे माघ या भाद्रपद माह में ही निकालना चाहिये।
काटने से पहले वृक्ष की पूजा करनी चाहिये और क्षमा मांगनी चाहिये कि वृक्ष को जड़ से निकाला जा रहा है। साथ ही एक वृक्ष निकालने के स्थान पर एक नया वृक्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिये। ऐसा तीन माह के भीतर कर देना चाहिये। वृक्ष काटने के समय वृक्ष को पूर्व या उतर दिशा में ही गिरना चाहिये न कि पश्चिम या दक्षिण दिशा में।
यदि उपर्लिखित वास्तु नियमों व सावधानियों के अनुसार वृक्षों व पौधों को जीवन में स्थान दिया जाए तो मानव जीवन में सुख, समृद्धि, शांति व बहार आती है
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