जय मां राजराजेश्वरी आज हम बात करेंगे लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन क्यों किया जाता है?
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन क्यों?
आम आदमी को हमेशा यह जिज्ञासा रहती है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन क्यों किया जाता है? इस लेख में शास्त्रों के उद्धरण के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का शास्त्र सम्मत आधार क्या है और लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी पूजा आखिर क्यों की जाती है?
हमेशा सभी जानते हैं कि दीपावली पर्व का अत्यंत प्राचीन काल से अत्यधिक महत्व है। साधारणतया सभी त्यौहारों को मनाने का एक कारण मानव-जीवन में परिवर्तन शीलता लाना है। इसी उद्देश्य से दीपावली पर्व को भी एक नहीं, बल्कि पूरे पांच दिन अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों को साफ सुथरा करके, स्वयं भी शुद्ध पवित्र होकर रात्रि को विधि-विधान से गणेश लक्ष्मी का पूजन कर उनको प्रसन्न करने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं।
इस पूजा-अर्चना के पीछे प्रायः यही भावना विद्यमान रहती है कि लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर हमारे घर में प्रविष्ट हों तथा हमें धन समृद्धि से युक्त करें, किंतु यदि हम लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर धन, समृद्धि और खुशहाली पाना चाहते हैं और केवल यही कामना रखते हैं कि लक्ष्मी जी का स्थाई निवास हमारे घर में हो तो मात्र इस कामना की सिद्धि के लिये उनके साथ गणेश पूजन करते हैं?
आम आदमी को हमेशा यह जिज्ञासा रहती है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन क्यों किया जाता है? इस लेख में शास्त्रों के उद्धरण के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का शास्त्र सम्मत आधार क्या है और लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी पूजा आखिर क्यों की जाती है?
हमेशा सभी जानते हैं कि दीपावली पर्व का अत्यंत प्राचीन काल से अत्यधिक महत्व है। साधारणतया सभी त्यौहारों को मनाने का एक कारण मानव-जीवन में परिवर्तन शीलता लाना है। इसी उद्देश्य से दीपावली पर्व को भी एक नहीं, बल्कि पूरे पांच दिन अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों को साफ सुथरा करके, स्वयं भी शुद्ध पवित्र होकर रात्रि को विधि-विधान से गणेश लक्ष्मी का पूजन कर उनको प्रसन्न करने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं।
इस पूजा-अर्चना के पीछे प्रायः यही भावना विद्यमान रहती है कि लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर हमारे घर में प्रविष्ट हों तथा हमें धन समृद्धि से युक्त करें, किंतु यदि हम लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर धन, समृद्धि और खुशहाली पाना चाहते हैं और केवल यही कामना रखते हैं कि लक्ष्मी जी का स्थाई निवास हमारे घर में हो तो मात्र इस कामना की सिद्धि के लिये उनके साथ गणेश पूजन करते हैं?
इस अभीष्ट की प्राप्ति के लिये तो लक्ष्मी जी के साथ उनके पति विष्णु जी का आह्वान करना चाहिये। लक्ष्मी जी, विष्णु जी की प्राण वल्लभा, प्रियतमा मानी गई हैं। यदि उन्हें प्रसन्न करना है तो उनके पति विष्णु जी का उनके साथ पूजन करना चाहिये। जैसी कि शास्त्र सम्मत मान्यता है कि लक्ष्मी जी विष्णु जी को कभी नहीं छोड़तीं, वेदों के अनुसार भी विष्णु जी के प्रत्येक अवतार में लक्ष्मी जी को ही उनकी पत्नी का स्थान मिला है।
जहां विष्णु जी हैं वहीं उनकी प्राणप्रिया पत्नी लक्ष्मी जी भी हैं। लेकिन फिर भी दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश-पूजन का विधान है। ऐसा क्यों? ‘‘गणेश जी को लक्ष्मी जी का मानस-पुत्र माना गया है।’’ फिर माता और पुत्र का एक साथ पूजन करके व्यक्ति क्या पाना चाहता है?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये सर्वप्रथम हमें दीपावली का महत्व तथा लक्ष्मी एवं गणेश के पारस्परिक एवं गूढ़ संबंध को समझना अति आवश्यक है। तांत्रिक दृष्टि से दीपावली को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने तथा महाशक्तियों को जागृत करने की सर्वश्रेष्ठ रात्रि माना गया है। गणेश जी का किसी भी कार्य में सर्वप्रथम पूजन इस बात का संकेतक तो है ही कि हमारे सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न हों, साथ ही गणेश जी के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है।
इन सारे प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये सर्वप्रथम हमें दीपावली का महत्व तथा लक्ष्मी एवं गणेश के पारस्परिक एवं गूढ़ संबंध को समझना अति आवश्यक है। तांत्रिक दृष्टि से दीपावली को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने तथा महाशक्तियों को जागृत करने की सर्वश्रेष्ठ रात्रि माना गया है। गणेश जी का किसी भी कार्य में सर्वप्रथम पूजन इस बात का संकेतक तो है ही कि हमारे सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न हों, साथ ही गणेश जी के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है।
अतः दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ निम्न गणेश मंत्र का जाप सर्व सिद्धि प्रदायक माना गया है। ‘‘प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकम्।। भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुष्य कामार्थ सिद्धये।। गणेश जी का स्मरण वक्रतुंड, एकदन्त, गजवक्त्र, लंबोदर, विघ्न राजेंद्र, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति, एवं गजानन इत्यादि विभिन्न नामों द्वारा किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार- गणेश जी ने वक्रतुंड रूप में ‘मत्सरासुर’ नामक दैत्य को अभयदान देकर देवताओं की उससे रक्षा की थी।
‘एकदन्त’ रूप में गणेश जी ने महर्षि च्यवन के पुत्र बलवान पराक्रमी दैत्य ‘मदासुर’ को पराजित कर उससे कहा था कि जहां मेरी पूजा हो वहां तुम कदापि मत जाना’’ ।
‘महोदर’ रूप में गणेश जी ने गुरु शुक्राचार्य के शिष्य ‘मोहासुर’ का दर्प चूर-चूर करके देवताओं को निर्भय किया था। मोहासुर ने गणेश जी की भक्ति करके उनसे निवेदन किया था कि ‘‘अब मैं कभी भी देवताओं और मुनियों के किसी भी धर्माचरण में विघ्न नहीं उपस्थित करूंगा।’’
इसी प्रकार गणेश जी का ‘लंबोदर’ रूप क्रोधासुर ‘गजानन रूप’ लोभासुर, ‘विकट रूप- कामासुर ‘विघ्नराज रूप’ ममतासुर तथा ‘धूम्रवर्ण स्वरूप अहंतासुर नामक दैत्यों का संहारक माना गया है। गणेश जी ने अपने प्रत्येक रूप में दैत्यों को पराजित कर उन्हें यथार्थ का ज्ञान कराया, देवताओं की रक्षा की तथा उन्हें आरोग्य, अमरत्व एवं अजेय होने का वरदान दिया।
‘एकदन्त’ रूप में गणेश जी ने महर्षि च्यवन के पुत्र बलवान पराक्रमी दैत्य ‘मदासुर’ को पराजित कर उससे कहा था कि जहां मेरी पूजा हो वहां तुम कदापि मत जाना’’ ।
‘महोदर’ रूप में गणेश जी ने गुरु शुक्राचार्य के शिष्य ‘मोहासुर’ का दर्प चूर-चूर करके देवताओं को निर्भय किया था। मोहासुर ने गणेश जी की भक्ति करके उनसे निवेदन किया था कि ‘‘अब मैं कभी भी देवताओं और मुनियों के किसी भी धर्माचरण में विघ्न नहीं उपस्थित करूंगा।’’
इसी प्रकार गणेश जी का ‘लंबोदर’ रूप क्रोधासुर ‘गजानन रूप’ लोभासुर, ‘विकट रूप- कामासुर ‘विघ्नराज रूप’ ममतासुर तथा ‘धूम्रवर्ण स्वरूप अहंतासुर नामक दैत्यों का संहारक माना गया है। गणेश जी ने अपने प्रत्येक रूप में दैत्यों को पराजित कर उन्हें यथार्थ का ज्ञान कराया, देवताओं की रक्षा की तथा उन्हें आरोग्य, अमरत्व एवं अजेय होने का वरदान दिया।
दानवों के अत्याचार के कारण उस समय जो अधर्म और दुराचार का राज्य स्थापित हो गया था, उसे पूर्णतया समाप्त कर न केवल देवताओं को बल्कि दैत्यों को भी अभय दान देकर उन्हें अपनी भक्ति का प्रसाद दिया और उनका भी कल्याण ही किया। अतः स्पष्ट है कि दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का धार्मिक, आध्यात्मिक, तांत्रिक एवं भौतिक सभी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है ताकि लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर हमें धन-संपदा प्रदान करें तथा उस धन को प्राप्त करने में हमें कोई भी कठिनाई या विघ्न ना आये, हमें आयुष्य प्राप्त हो, सभी कामनाओं की पूर्ति हो तथा सभी सिद्धियां भी प्राप्त हों।
हमारी हमेशा यही ईच्छा रहती है कि हमारे समस्त शुभ कार्यों में विभिन्न आसुरी शक्तियों द्वारा किसी भी प्रकार का कोई भी विघ्न उपस्थित न हो, हम धर्म का आचरण करें, जीवन में धर्म कर्म की स्थापना हो तथा लक्ष्मी जी के प्रसाद से जो धन वैभव हमें प्राप्त हो, गणेश जी की कृपा से वह रोग, ग्रहण इत्यादि जैसे अशुभ कार्यों में व्यय न हो, हम पूर्ण सुखोपभोग करके, कल्याणमय एवं निरोगी जीवन व्यतीत करें।
दीपावली की पवित्र एवं शुभ रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी (जो उनके मानस-पुत्र हैं) का पूजन करने में संभवतः एक भावना यह भी निहित है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी सदैव रक्षा करें, उनका मातृवत स्नेह और शुभाशीष हमें सदा ही प्राप्त होता रहे अर्थात् हम आजीवन सुखी, समृद्ध एवं धन संपन्न रहें।
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि गणेश जी को सदा लक्ष्मी जी की बाईं ओर ही रखें। आदिकाल से पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है। बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है। अतः पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिनी ओर ही रहें। तभी पूजा का पूर्ण फल मिलेगा।
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि गणेश जी को सदा लक्ष्मी जी की बाईं ओर ही रखें। आदिकाल से पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है। बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है। अतः पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिनी ओर ही रहें। तभी पूजा का पूर्ण फल मिलेगा।
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पंडित विश्वनाथ त्रिपाठी
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