बालारिष्ट दोष - जब चंद्रमा लग्न से छठे, आठवें और बारहवें भाव में, कमज़ोर स्थिति में और क्रुर ग्रहों के प्रभाव में हो तो बालारिष्ट दोष होता हैं। चंद्रमा की ये कमज़ोर और पीड़ित स्थिति बचपन में आयु के लिए शुभ नहीं होती हैं। ऐसे जातक को व उसकी माता को बचपन में ही बहुत कष्टों से गुज़रना पड़ता हैं, क्योंकि सौम्य ग्रहों पर अशुभ प्रभाव, शुभता को कम करते हैं।
उपाय:- 1. दुर्गा माँ की नियमित रुप से आराधना करें, जिससे जातक के ज़ीवन में आए दुर्भाग्य के क्षण टल सके।
2. महामृत्युंज़य का पाठ और रुद्राभिषेक करे।
पाप कर्तरी दोष- जब लग्न या किसी शुभ ग्रह के दोनों ओर पाप ग्रह हों तो पाप कर्तरी दोष बनता हैं, जिससे जातक का ज़ीवन संघर्षमय हो जाता हैं, जिस तरह से गर्दन पर कैंची रख दी जाती हैं, ये योग उसी तरह काम करता हैं। जिस भाव में यह योग बनता हैं, उसी भाव से जुड़े फलों में असफलताएं प्राप्त होती हैं। जातक खुद को किसी बंधन में कैद समझता हैं और चाह कर भी बाहर निकलने से ड़रता हैं। ऐसा जातक कभी खुद को भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं, अपनी ज़िंदगी को ही दोष देते हैं। हैं।
उपाय:- 1. पालतु जानवर को घर में रखे और नियमित रुप से देखभाल करें।
2. हनुमान जी की नियमित रुप से आराधना करें।
3. सुर्य गायत्री मंत्र का जाप करे।
दैन्य दोष- शुभ भावों के स्वामी (1, 4, 5, 9, 10) अशुभ भावों के स्वामियों (3, 6, 8, 12) के साथ राशि परिवर्तन करें तो यह दैन्य योग होता हैं। ऐसे में सभी कुछ होते हुए भी उसका शुभ फल प्राप्त नहीं हो पाता हैं। जातक के ज़ीवन में संघर्ष और असफलता रहती हैं।
उपाय:- 1. महामृत्युंज़य मंत्रों का सवा लाख जाप करें।
2. धार्मिक स्थानों की सफाई करे और अपना योगदान दे।
3. ज़रुरतमंद व दिव्यांग की सेवा करें।
केन्द्रुम योग : चंद्रमा के साथ या चंद्रमा के दोनो ओर कोई ग्रह न हो तो यह योग बनता हैं। परंतु कई कारणों से यह योग भंग भी होता हैं। यह योग चंद्रमा से बनता हैं जो मन का कारक हैं, जिससे जातक के मन में शांति नहीं रहती और वह अकेलापन व अलगाव महसूस करता हैं, मानसिक रुप से अशांत रहना और धन की कमी से तनाव के साथ अवसाद से भी ग्रसित रहता हैं। यह योग भंग न हो तो इस योग को दरिद्रता व शकट योग भी कहते हैं।
उपाय:-
1. जातक को ज़रुरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देनी चाहिए।
2. प्रत्येक शुक्रवार को कनक धारा-स्रोत्र का विधि-विधान से पाठ करें और कन्या को भोज़न खिलाए।
केंद्राधिपति दोष: जब शुभ भावों (केंद्र 1,4,7,10) के अधिपति शुभ ग्रह हो तो यह दोष बनता हैं। केंद्र भाव कुड़ली के आधार होते हैं और यही भाव जीवन में लड़ने की शक्ति देते हैं। लग्न के स्वामी जब मिथुन, कन्या, धनु या मीन होतो, केंद्र भावों में शुभ ग्रहों का स्वामित्व होता हैं। अगर लग्न में मिथुन व कन्या राशि हो तो गुरु से दोष बनता हैं और लग्न में धनु व मीन राशि हो तो बुध से दोष बनता हैं। जब गुरु की दशा आती हैं, तब जातक खुद को बंधन में बंधा महसूस करते हैं, व्यापार व शिक्षा में रुकावट आती हैं। बुध की दशा में जातक को व्यापार में व शिक्षा में मनचाहे अवसर प्राप्त नहीं होते और बातचीत में भी असफलता महसूस हैं।
उपाय:-
1. नियमित रुप से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
2. प्रात: मंदिर या किसी भी धर्म स्थान में जा कर अपनी सेवा दे।
3. गाय व ब्राह्मण को भोज़न खिलाए।
मांगलिक दोष: कुंड़ली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्ट्म व द्वाद्श भाव में मंगल की स्थिति हो तो मांगलिक दोष होता हैं। यह विवाह के सुख के लिए देखा जाता हैं। मंगल के अलग भाव में होने से अलग भाव का फल मिलता हैं। अगर कुंड़ली में यह दोष हो तो जातक को बिना कुण्डली मिलाए विवाह नहीं करना चाहिए। तभी विवाहित ज़ीवन का सुख में मिल पाता हैं। यदि मंगल अपनी स्व राशि, मित्र राशि या उच्च राशि में हो तो इस दोष का अधिक प्रभाव नहीं रहता हैं, परंतु सप्तम व अष्टम भाव के मंगल के लिए कोई समझौता न करें। यह योग चंद्र्मा व शुक्र से भी देख लेना चाहिए।
उपाय:-
1. विवाह से पहले कुम्भ-विवाह या पीपल विवाह करना चाहिए।
2. नियमित रुप से सुंदरकांड़ का पाठ करना चाहिए।
3. मंगलागौरी व्रत विधि-विधान से करें।
कालसर्प दोष: जब कुंड़ली में सारे ग्रह राहु व केतु के बीच हो तो कालसर्प दोष बनता हैं, कुंड़ली के जिस भाव में राहु होगा उसी अनुसार अलग-अलग नाम का दोष होता हैं। यह दोष बारह प्रकार के होते हैं और हर दोष का नकारात्मक प्रभाव नहीं होता हैं, इसलिए दोष को अच्छी तरह से जाँच कर ही कहना चाहिए क्योंकि जब कोई ग्रह राहु के अंशों से बाहर आ जाए तो यह भंग हो जाता हैं। आजकल बहुत से लोग आम लोगों को ड़रा कर अपनी कमाई का साधन बनाते हैं। इतनी परेशानी होती नहीं हैं, जितनी कह कर ड़रा दिया जाता हैं। यह दोष होने से जातक मानसिक रुप से परेशान रहता हैं, उसके सभी कार्य देरी से होते हैं, आर्थिक परेशानी के साथ शारीरिक परेशानी भी होती हैं।
उपाय:-
1. ज्योर्तिलिंग त्रिम्बकेशवर, नासिक या महाकालेशवर उज्जैन में जा कर किसी योग्य आचार्य से इस दोष की पूजा करवानी चाहिए।
2. सावन माह में नियमित रुप से रुद्राभिषेक करना चाहिए व महामृत्युंज़य का पाठ करना चाहिए।
3. किसी शुभ महुर्त में शनिवार को सुखे नारियल को बहते जल में प्रवाहित करे।
चण्डाल दोष: वैदिक ज्योतिष में जब कुण्डली में बृहस्पति ग्रह, राहू के साथ हो तो चण्डाल दोष बनता हैं। अगर कुण्डली में दूसरे ग्रह भी शुभ न हो तो, इस दोष में जातक साधु के भेष में चण्डाल व पाखंड़ी होता हैं, वह पूजा-पाठ का ढोंग करता हैं। जातक अवैध कार्य, चरित्र भंग व वह अधिक भौतिकवादी होता हैं क्योंकि राहु का आसुरी प्रभाव गुरु के देवत्व को खत्म कर देता हैं।
उपाय:-
1. नियमित रुप से विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करे, और माथे पर चंदन, केसर व हल्दी का तिलक करें।
2. धार्मिक स्थल में जा कर शारीरिक व आर्थिक रुप से अपनी सेवा दे।
3. प्रत्येक बृह्स्पतिवार को 11 माला “ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवें नम: का जाप करें।
अंगारक दोष: जब कुंड़ली में मंगल व राहु की युति हो तब अंगारक दोष बनता हैं। इस दोष से जातक के अंदर आक्रामक क्रोध व नकारात्मकता होती हैं। जिसकाा अधिक अशुभ प्रभाव जातक को हिंसक, आतंकवादी या हत्यारा भी बना देता हैं। अगर कुंड़ली में शुभ प्रभाव अधिक हो तो जातक पुलिस व सेना अधिकारी होता हैं। जातक भरपूर साहस के साथ युद्ध नीति में ख्याति भी प्राप्त करता हैं।
उपाय:-
1. नियमित रुप से हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए और उनको चोला भी चढ़ाए।
2. कुत्तों को मीठी रोटी व पक्षियों को सात अनाज़ खिलाए।
3. अपने घर की सफाई खुद करनी चाहिए।
पितृ दोष: यह दोष वैदिक ज्योतिष की दृष्टि में बहुत महत्वपुर्ण होता हैं। जब सूर्य, चंद्रमा व गुरु, शनि, राहु व केतु से पीडित हो कर लग्न, पंचम, नवम या दशम भाव में हो तो यह दोष होता हैं। इस दोष को लेकर भी बहुत सी भ्रांतियां हैं, जिससे साधारण आदमी को ड़राया जाता हैं और कई तरह की पूजा करवाई जाती हैं। इसलिए बहुत ही जाँच परख कर ही दोष का परिहार करना चाहिए। बहुत से ऋषि मुनियों का मत हैं कि इस दोष के होने से ज़ीवन भर परेशानियों व समस्याओं का सामना करना पढ़ता हैं। जातक को अपनी संतान से कष्ट होता हैं या किसी बुरी आदत व आपराधिक गतिविधियों के वज़ह से धन का नुकसान होता हैं। जातक सरकारी कार्य में बेवज़ह उलझता हैं व कारावास में दण्ड पाता हैं। उसे वंश वृद्धि व शिक्षा में रुकावट आती हैं। शारीरिक रोग व वैवाहिक सुख नहीं मिल पाता। सप्तम या अष्टम में गुरु होने से पिछले जन्म में स्त्री ने अपने पति को धोखा दिया होता हैं या जातक पारिवारिक दायित्व से बचने के लिए घर छोड़ चुका होता हैं, तभी उसको इस ज़न्म में गृह्स्थ व पति सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती। जातक की कुंड़ली में चंद्रमा सप्तम स्थान में पीडित हो तो जातक ने पिछले जन्म में अपनी पत्नी की वज़ह से अपनी माता को कष्ट दिया था, तभी उसका इस जन्म में वैवाहिक सुख क्षीण हो जाता हैं। चतुर्थ भाव में पीडित चंद्रमा होने से जातक ने पिछले जन्म में अपनी माता को मारा होता हैं तभी वह इस जन्म में माता से कष्ट पाता हैं और वह ज़ीवन भर किसी कारण सेवा कर अपना कर्ज़ चुकाता हैं। जातक को कई रोगियों का भी श्राप होता हैं, जिस कारण ज़ीवन भर किसी रोग को भुगतना पढ़ता हैं।
इस दोष में जातक के पितृ श्रापित होते हैं जिस कारण वह अपनी योनि में तृप्त नहीं रह पाते और उसके वंशज़ो को भी इस का भुगतान करना पड़ता हैं। जिस तरह अपने पिता या दादा की सम्पत्ति का भुगतान उनकी संतान को करना पता हैं, उसी तरह अपने पुर्वज़ों के अच्छे बुरे कर्मों का भी भुगतान करना पड़ता हैं। जातक की कुंड़ली में यह दोष इस जन्म हो तो यह कई जन्मों के कर्मों के कारण होते हैं।
उपाय:-
1. प्रत्येक अमावस्या को घर में भोज़न बना कर, दक्षिण की ओर मुख कर अपने पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए और भोज़न किसी ब्राह्मण को खिलाना चाहिए।
2. अपने पिता व पिता समान पुरुष की इज़्ज़त करें, उनके चरण स्पर्श करें और सूर्य को ज़ल चढ़ाए।
3. अमावस्या को पितृ हवन करें व 11 माला "ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवें नम:" का जाप करें।