प्रश्न: ज्योतिष के अनुसार स्वप्न किस ग्रह स्थिति में आते हैं? किन योगों में अच्छे स्वप्न आते हैं और किन में बुरे? कौन सी दशा या गोचर में परिवर्तन से अच्छे या बुरे स्वप्न आते हैं? एक ही व्यक्ति को कभी अच्छे तो कभी बुरे स्वप्न क्यों आते हैं? वहीं किसी को बहुत स्वप्न आते हैं तो किसी को कम या फिर स्वप्न याद नहीं रहते- ऐसा क्यों? विस्तार से अपने विचार दें।
जायथार्थ में नहीं है, अवास्तविक है उसे सच की भांति साकार रूप में देखने का नाम स्वप्न है अर्थात जो अपना नहीं है, उसे निद्रा में आंखों के सामने देखना सपना है। नहीं को सही में देखना ही तो स्वप्न कहलाता है।
आधुनिक विज्ञानियों ने स्वप्न विषयक जिन तथ्यों का पता लगाया, उनमें से अधिकांश ऋषियों के निष्कर्षों से मेल खाते पाए गए हैं। बृहदारण्यक में जाग्रत एवं सुषुप्त अवस्था के समान मानव के मन की तीसरी अवस्था स्वप्न अवस्था मानी गई हैं। जिस प्रकार मनुष्य के संस्कार उसे जाग्रतावस्था में आत्मिक संतोष और प्रसन्नता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार जो भी स्वप्न आएंगे वे उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं के प्रतिबिंब ही होंगे।
शिकागो विश्वविद्यालय के दो छात्रों नेपोलियन क्लीरमां तथा सूजोन ऐसेटिस्की जब इस संबंध में शोध करने बैठे तो उन दोनों का शोध कार्य तो पूर्ण नहीं हो सका पर स्वप्न से संबंधित कई नये तथ्य सामने आए। उन्होंने पाया, कि जब कोई स्वप्न देखता है, तो उसकी आंखों की पुतलियां ठीक उसी प्रकार घूमती हैं जिस प्रकार जाग्रतावस्था में कोई भी दृश्य आदि देखते समय घूमती हैं। अर्थात आखें उस समय बंद रहते हुए भी देखती हैं।
जागते हुए जो दिवा स्वप्न हम देखते हैं वे मात्र कल्पनाएं ही होती हैं पर सुषुप्तावस्था में जो कल्पनाएं की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। निरर्थक, असंगत स्वप्न उथली नींद में ही आते हैं जो उद्विग्न करने वाले होते हैं। वस्तुतः मनुष्य निरंतर जागता नहीं रह सकता। यदि किसी को सोने ही न दिया जाए तो वह मर जाएगा। मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग निद्रा में व्यतीत करता है और निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों से आच्छादित रहता है।
भारतीय शास्त्रादि स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच का द्वार अर्थात संधि द्वार मानते हैं। मनुष्य इस संधि स्थल से इस लोक को भी देख सकता है और उस परलोक को भी। इस लोक को संधि स्थान व स्वप्न स्थान कहते हैं।
स्वप्नों का संबंध मन व आत्मा से होता है तो इनका संबंध चंद्र और सूर्य की युति से लगाते हैं। गोविंद राज विरचित रामायण भूषण के स्वप्नाध्याय का वचन है कि जो स्त्री या पुरुष स्वप्न में अपने दोनों हाथों से सूर्यमंडल अथवा चंद्र मंडल को छू लेता है, उसे विशाल राज्य की प्राप्ति होती है। अतः स्पष्टतया किसी भी व्यक्ति को शुभ समय की सूचना देने वाले स्वप्नों से यह पूर्वानुमान किया जा सकता है। चंद्र की स्थिति व दशाएं शुभ होने पर एवं सूर्य की स्थिति व दशाएं आदि कारक होने पर शुभ स्वप्न दिखाई पड़ेंगे अन्यथा अशुभ। प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो स्वप्न का आने या न आने का कारण सूर्य व चंद्र ग्रह ही होते हैं क्योंकि सूर्य का संबंध आत्मा से और चंद्र का संबंध मनुष्य के मन से होता है।
दुःखद या दुःस्वप्नों के आने का कारण हमारा मोह और पापी मन ही है। यही बात अथर्ववेद में भी आती है।
‘यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते’
अर्थात मनुष्य को अपने अज्ञान और पापी मन के कारण ही विपत्तिसूचक दुःस्वप्न आते रहते हैं। इनके निराकरण का उपाय बतलाते हुए ऋषि पिप्लाद कहते हैं कि यदि स्वप्नावस्था में हमें बुरे भाव आते हों तो ऐसे दुःस्वप्नों को पाप-ताप, मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की उपासना शुरू कर देनी चाहिए ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं, दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे मन में सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों, सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा की अनुभूति होने लगे। वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों से स्पष्ट है कि पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु तथा केतु की दशा अंतर्दशा तथा गोचर से अशुभ स्थानों में होने पर बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं जो जीवन में आने वाली दुरवस्था का मनुष्य को बोध कराते हैं। साथ ही शुभ ग्रहों की दशा अंतर्दशा में शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर गोचर में अच्छे स्वप्न दिखाई देते हैं। आकाश में ऊपर उठना उन्नति तथा अभ्युदय का द्योतक है जबकि ऊपर से नीचे गिरना अवनति व कष्ट का परिचायक है।
बुरे स्वप्न आना तभी संभव है जब लग्न को, चतुर्थ एवं पंचम भाव को प्रभावित करता हुआ ग्रहण योग (राहु+चंद्र, केतु+सूर्य, राहु+सूर्य, केतु+चंद्र) और चांडाल योग (गुरु व राहु की युति) वाली ग्रह स्थिति निर्मित हो या इसी के समकक्ष दशाओं गोचरीय ग्रहों का दुर्योग बन जाए। इसके विपरीत लग्न, चतुर्थ/पंचम भाव को प्रभावित करते हुए शुभ ग्रहों के संयोग के समय अच्छे स्वप्न आने की कल्पना की जा सकती है।
जब हमें कोई अच्छे सुखद स्वप्न दिखाई देते हैं, तो हमारा मन पुलकित हो जाता है, हमें सुख की अनुभूति होने लगती और हम प्रसन्न हो जाते हैं। परंतु जब हमें बुरे स्वप्न दिखते हैं तो मन घबरा जाता है, हमें एक अदृश्य भय सताने लगता है और हम दुखी हो जाते हैं। विद्वानों के अनुभवों से हमें यह बात ज्ञात होती है कि इस तरह के बुरे, डरावने स्वप्न दिखाई देने पर यदि नींद खुल जाए तो हमें पुनः सो जाना चाहिए।
स्वप्नों के स्वरूप
फलित ज्योतिष में स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों में बांटा जाता है- दृष्ट स्वप्न, शृत स्वप्न, अनुभूत स्वप्न, प्रार्थित स्वप्न, सुम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न, भाविक स्वप्न और काल्पनिक स्वप्न।
दृष्ट स्वप्न
दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों को सोते समय स्वप्न रूप में देखे जाने वाले सपनों को दृष्ट स्वप्न कहा जाता है। ये सपने कार्य क्षेत्र में अत्यधिक दबाव और किसी वस्तु या कार्य में अत्यधिक लिप्तता के कारण या मन के चिंताग्रस्त होने पर दिखाई देते हैं। इसलिए इनका कोई फल नहीं होता। कभी सोने से पूर्व किसी प्रकरण पर विचार विमर्श किया गया हो और किसी बात ने मन को प्रभावित या उद्वलित किया हो, तो भी मनुष्य सपनों के संसार में विचरण करता है।
शृत स्वप्न
भयावह फिल्म देखकर या उपन्यास पढ़कर सपनों में भयभीत होने वालों की संख्या कम नहीं है। इन सपनों को शृत स्वप्न कहा जाता है। ये सपने भी वाह्य कारणों से दिखाई देने के कारण निष्फल होते हैं।
अनुभूत स्वप्न
जाग्रत अवस्था में कोई बात कभी मन को छू जाए या किसी विशेष घटना का मन पर प्रभाव पड़ा हो और उस घटना की स्वप्न रूप में पुनरावृत्ति हो जाए, तो ऐसा स्वप्न अनुभूत सपनों की श्रेणी में आता है। इनका भी कोई फल नहीं होता।
प्रार्थित स्वप्न
जाग्रत अवस्था में देवी देवता से की गई प्रार्थना, उनके सम्मुख की गई पूजा-अर्चना या इच्छा सपने में दिखाई दे, तो ऐसा स्वप्न प्रार्थित स्वप्न कहा जाता है। इन सपनों का भी कोई फल नहीं होता।
काल्पनिक स्वप्न
जाग्रत अवस्था में की गई कल्पना सपने में साकार हो सकती है किंतु यथार्थ जीवन में नहीं और इस प्रकार के सपनों की गणना भी फलहीन सपनों में की जाती है।
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न
मनुष्य रोगों से पीड़ित होने पर, वात, पित्त या कफ बिगड़ने पर जो स्वप्न देखता है, वे भी निष्फल ही होते हैं। नींद की वह अवस्था, जिसे मेडिकल साइंस की भाषा में हिप्नेगोगिया और भारतीय भाषा में सम्मोहन कहा जाता है। इसमें व्यक्ति न तो पूरी तरह से सोया रहता है और न पूरी तरह से जागा। इसमें देखे गए सपने भी निष्फल होते हैं।
इस तरह ऊपर वर्णित सभी छः प्रकार के सपने निष्फल होते हैं। ये सभी असंयमित जीवन जीने वालों के सपने हैं। विश्व में 99.9 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये लोग स्वप्न की भाषा नहीं समझकर स्वप्न विज्ञान की, स्वप्न ज्योतिष की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं। स्वप्न के बारे में इनकी धारणाएं नकारात्मक सोच वाली ही होती हैं।
भाविक स्वप्न
जो स्वप्न कभी देखे न गए हों, कभी सुने न गए हों, अजीबोगरीब हों, जो भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास कराएं, वे भाविक स्वप्न ही फलदायी होते हैं। पाप रहित मंत्र साधना द्वारा देखे गए स्वप्न भी घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं। मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के स्वप्नों से है। जन्मकालीन या गोचरीय कालसर्प योग वाली ग्रह स्थिति अर्थात राहु-केतु के मुख में सभी ग्रहों के समा जाने वाली स्थिति के निर्मित हो जाने पर भगवान शंकर के कंठहार पंचमी तिथि के देवता स्वप्न में आकर मनुष्यों के दिल को दहला देते हैं। ऐसा सपना देखकर मनुष्य का मन मस्तिष्क विचलित हो उठता है। अरिष्टप्रद सूर्य, चंद्र, राहु और केतु के मंत्र जप व स्तोत्र पाठ से तथा, दान, शांति कर्म के उपायों को अपनाकर व्यक्ति दुखद स्वप्नों के अनिष्टों से बचने में समर्थ हो सकता है।
नौ ग्रहों की दशा अंतर्दशा में देखे जाने वाले स्वप्न
स्वप्न के आधार पर फल कथन करने में ज्योतिषियों को आसानी होती है। अगर जातक की राहु, केतु या शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और जन्मकुंडली में वे नीच स्थिति में हों, तो उसे हमेशा डरावने स्वप्न आते हैं जैसे बार-बार सर्प दिखाई देना राहु केतु से बनने वाले कालसर्प योग के द्योतक होते हैं। यदि राहु, केतु व शनि की महादशा या अंतर्दशा हो और वे जन्मकुंडली में स्वराशि या उच्च की राशि में बैठे हों, तो जातक को शुभ स्वप्न आते हैं जैसे जर्मनी के फ्रेडरिक कैक्यूल को राहु से संबंधित सांप का वर्तुल आकार में घूमकर स्वर्ण की अंगूठी जैसे आकार का बनकर अपने-आपको काटते हुए दिखाई देना। इसी भांति सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिहास होव को शनि की महादशा अंतर्दशा व कुंडली में उनकी उच्च स्थिति होने के कारण उसके सिर में राक्षस के दूतों द्वारा भाला भोंकने की स्वप्न की घटना जिसके फलस्वरूप उसने सिलाई मशीन का आविष्कार किया। उसी प्रकार यदि सूर्य या मंगल की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और वे नीचस्थ हों, तो आग एवं चोट लगने के स्वप्न दिखाई देते हैं। यदि उपर्युक्त महादशा व अंतर्दशा चल रही हो और जातक की जन्मकुंडली में सूर्य और मंगल उच्च या स्वराशि में हो, तो अशुभ स्वप्न नहीं बल्कि शुभ स्वप्न दिखाई देंगे जैसे राजकार्य में जय, मांगलिक कार्य संपन्न होना आदि। यदि चंद्र और गुरु की महादशा अंतर्दशा हो और वे नीचस्थ हों तो कफ, पेट आदि से संबंधित रोग होते हैं। इसके विपरीत यदि चंद और गुरु उच्चस्थ हों, तो महादशा अंतर्दशा में राजगद्दी प्राप्त होने के स्वप्न दिखाई देंगे। वहीं यदि शुक्र की उच्च स्थिति हो, तो सुख, ऐशो आराम, धन लक्ष्मी आदि से संबंधित और नीचस्थ हो, तो अनेक बीमारियों के स्वप्न दिखाई देते हैं।
नीचस्थ सूर्य की दशा/परिस्थिति या गोचरीय दशा आने पर रेतीले मरुस्थलों की सैर, मरुस्थलों का जहाज ऊंट, गर्म हवाओं के थपेड़े खाता हुआ बेतहासा मजनूं की तरह भागता मनुष्य, सूर्य का सारथी, उष्ण कटिबंधों के दृश्य, सूखा, फटती हुई जमीन, घर-मकान की दीवारों की दरारें, भूख प्यास से व्याकुल पागलों की तरह भटकते लोग, खौलता हुआ झरना, तपेदिक के मरीज, मृगतृष्णा का जल, मौत का सन्नाटा, तपे हुए लोहे के सिक्के लुटाती हुई अलक्ष्मी, सिर पर सेहरे की जगह कफन, ओले की जगह टपकते अंगारे, चांदनी बिखराता सूर्य, तपता हुआ चंद्रमा, हंसता हुआ सियार, चूहे की भांति दुबका हुआ शेर, आकाश में पक्षियों की तरह उड़ता हुआ प्राणी, रोता हुआ मुर्दा आदि दिखाई देने की संभावना रहती है।
इसी तरह के स्वप्न गोचर में वृष राशि में प्रवेश करते हुए सूर्य की दशा में अथवा उसकी दशांतर्दशा में आ सकते हंै। काला बाबा की राशि मकर या कंुभ में सूर्य के प्रवेश की दशा में पर्वतारोहण करते मगरमच्छ, दिन में देखते उल्लू, चलने हुए गरुड़, दीपावली की रात्रि में चमकता हुआ शरद पूर्णिमा के चंद्रमा, निशीथ काल में खिलती हुई कुमुदिनी, चंद्रोदय होते ही खिलते हुए कमल से निकलते हुए भौंरे, पर्वत से पानी निकालती हुई पनिहारिन, दिन में उदित होते चंद्रमा, रात्रि में धूप, बीहड़ घने काले अंधियारे जंगल में नाचते सफेद मोर, काले हंस, गुलाबी रंग की भैंस आदि के समान स्वप्न आ सकते है जिनका फल सदैव अशुभ ही होता है।
चंद्र के दशा परिवर्तन से स्वप्नावस्था में शरीर में नाड़ी की गति मध्यम पड़ जाती है, खून का प्रवाह शिथिल हो जाता है, इंद्रियों की गति मंद हो जाती है और कफ का प्रकोप बढ़ जाता है।
मंगल की दशा अथवा गोचर में परिवर्तन होने से मनुष्य को चोट-चपेट, दुर्घटना, अग्नि-कांड, शव-दाह, खून-खराबे, मृत्यु-दंड, यान-दुर्घटना, युद्ध के तांडव, उल्कापात, गर्भपात, पक्की इमारतों का भरभराकर गिर जाना, ज्वालामुखी पर्वत और उनके खौलते हुए एवं छलछलाने लावे के दृश्य स्वप्न में दिखलाई देते हैं। मित्र लड़ने को उद्यत दिखाई देता है।
बुध की अंतर्दशा में सुंदर उपवन, हरे-भरे खेत, खंजन पक्षी, तोता विद्या प्राप्त करते बटुक, वृक्षों की ठंडी शीतल छांव में विश्राम करते बटोही, परीक्षा के डर से भयभीत होते बच्चे, छड़ी दिखाता शिक्षार्थी, परीक्षा में पास हो जाने पर हंसते मुस्कराते विद्यार्थी, सुंदरियों को वस्त्र लुटाता बजाज, बंध्या और पुत्र, मुनीमी करता सेठ, गीत सुनता बधिर, वक्ता बना गूंगा, बगुला भगत, सज्जन बना बातुल, बादशाही करता फकीर, शिष्ट तथा सुसंस्कृत बना गंवार, सुंदर हरे भरे ताजे फलों की डलिया, आदि नाना प्रकार के स्वप्न आते हैं। बुध की दशा में पोथी प्रदान करती हुई सरस्वती जी यदि स्वप्न में दर्शन दें, तो जातक वाणी की अधिष्ठात्री देवी वागीश्वरी की अनुपम कृपा का पात्र जातक बन जाता है।
गुरु की दशाओं में भी जलीय दृश्य कफ प्रकृति जातकों को स्वप्न में दिखलाई दे सकते हैं। गुरु की एक राशि मीन है जो जल तत्व वाली राशि है। उदर शूल, उदर व्रण, पाचन संस्थान संबंधी रोग, कफ जनित व्याधियों, वेदाध्ययन, वेद-पाठ, वेद-पुराण- उपनिषदों आदि के दर्शन, धर्म प्रवचन, संत-समागम, तीर्थ -यात्रा, गंगा-स्नान आदि से संबंधित विविध शुभाशुभ स्वप्न गुरु की अंतर्दशा में दिखाई दे सकते हैं। राज्याभिषेक संबंधी आनंदातिरेक देने वाले स्वप्न भी गुरु की दशा में दिखाई दे सकते हैं।
राहु, केतु या शनि की महादशा, अंतर्दशा या गोचर में इनकी अरिष्टकारक दशा चल रही हो, तो जातकों को बेहद भयानक स्वप्न दिखाई दे सकते हैं। राहु के अत्यधिक अशुभ होने पर स्वप्न ही नहीं, यथार्थ में भी बिजली का करंट लग जाया करता है। डरावने स्वप्नों का वेग गहरी निद्रा में डूबे हुए व्यक्ति को एकदम चैंका देता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डरावने स्वप्न देखता हुआ व्यक्ति उससे त्राण पा लेने को उठकर भाग जाना चाहता है परंतु स्वप्न के भारी दबाव के कारण वह बिस्तर से उठ भी नहीं पाता। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त, कफ ये शरीर के तीन दोष हैं।
वात प्रधान लोगों को स्वप्न में पर लग जाते हैं। वे नील गगन में स्वप्न में उड़ने का आनंद प्राप्त करते हैं।
पित्त प्रकृति के लोग स्वप्न में सारे जगत को जगमग ज्योति के रूप में निहारने लगते हैं। वे चांद, सितारे, उल्का और सूरज की रज को प्राप्त कर लेना चाहते हैं। उन्हें चांद-सूरज, तारा गण सप्तर्षि आदि अपना बना लेना चाहते हैं। वे गगन को देखकर मगन हो जाते हैं।
कफ प्रकृति वाले कूप, तड़ाग, बावलियों, नहरों, नदियों नालों झरनों, फव्वारों जलस्रोतों को स्वप्न में देखकर स्वयं जल का देवता वरुण बन जाना चाहते हैं। वे चांदनी रात में नौका-विहार करने लग जाते हैं। कोई स्वप्न में स्वयं को जलतरंग बजाता हुआ देखता है, कोई जलधर ही बन जाता है, कोई जल प्रपात देखता है तो कोई जल प्रलय। उन्हें जल से जन्म लेने वाला जलज स्वप्न में दिखाई देने लगता है। जल में कभी वे जलपरी का जलवा देखते हैं, कभी जलजहाज को जल डमरूमध्य में, तो कभी अपने को गोता लगाता हुआ देखते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि शुभाशुभ स्वप्न विभिन्न ग्रह स्थितियों में तब आते हैं जब ग्रहों की महादशाओं की अंतर्दशाओं में नीच, उच्च, स्वगृही, मित्र गृही, शत्रुगृही होते हैं। कोई भी ग्रह नीच, व शत्रुग्रही हो, तो जातक का बुरे व अशुभ स्वप्न आते हैं और यदि वह उच्च, स्वगृही व मित्र राशि में हो, तो अच्छे व शुभ, उसके मनोनुकूल, स्वप्न आते हैं।
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उस परिवार के सदस्यों को दुःस्वप्न दिखाई देते हैं। याद भी रहते हैं जिससे वे विचलित दिखाई देते है।
धन लाभ कराने वाले स्वप्न
कुछ स्वप्न व्यक्ति को धन लाभ कराने वाले होते हैं। हाथी, घोड़े, बैल, सिंह की सवारी, शत्रुओं के विनाश, वृक्ष तथा किसी दूसरे के घर पर चढे़ होने दही, छत्र, फूल, चंवर, अन्न, वस्त्र, दीपक, तांबूल, सूर्य, चंद्रमा, देवपूजा, वीणा, अस्त आदि के सपने धन लाभ कराने वाले होते हैं। कमल और कनेर के फूल देखना, कनेर के नीचे स्वयं को पुस्तक पढ़ते हुए देखना, नाखून एवं रोमरहित शरीर देखना, चिड़ियों के पैर पकड़कर उड़ते हुए देखना, आदि धन लक्ष्मी की प्राप्ति व जमीन में गड़े हुए धन मिलने के सूचक हैं।
मृत्यु सूचक स्वप्न
कुछ स्वप्न स्वयं के लिए अनिष्ट फलदायक होते हैं। स्वप्न में झूला झूलना, गीत गाना, खेलना, हंसना, नदी में पानी के अंदर चले जाना, सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों व नक्षत्रों को गिरते हुए देखना, विवाह, गृह प्रवेश आदि उत्सव देखना, भूमि लाभ, दाढ़ी, मूंछ, बाल बनवाना, घी, लाख देखना, मुर्गा, बिलाव, गीदड़, नेवला, बिच्छू, मक्खी, शरीर पर तेल मलकर नंगे बदन भैंसे, गधे, ऊंट, काले बैल या काले घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा की यात्रादि करना आदि मृत्यु सूचक हैं।
कुछ अनुभूत स्वप्न
एक महिला का पुत्र बहुत बुरी स्थिति में दिल्ली के एक अस्पताल में दाखिल था। महिला स्वयं बीमारी के कारण बिस्तर से लगी थीं। उसे एक रात स्वप्न में दिखाई दिया कि उसके गले की मोती की माला टूट गई है। मोती बिखर गए हैं। नींद खुली तो उसने देखा कि माला टूटी हुई थी। बहुत ढूंढने पर भी मोती पूरे नहीं मिले। ठीक उसी समय अस्पताल में उसके युवा पुत्र ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
जालंधर के एक व्यक्ति की पत्नी की छाती के कैंसर का ओपरेशन हो रहा था। उसे स्वप्न में दिखाई दिया कि कुछ लोग उन्हें मारने को दौडे़ चले आ रहे हैं। वह भाग रहा और लोग पीछा कर रहे हैं।
अचानक वह अस्पताल के निकट फ्लाई-ओवर पर चढ़ जाता है। स्वयं फिर वह अपने घर (जालंधर) के पास पहुंचा हुआ पाता है। वे लोग अब भी उसका पीछा कर रहे हैं। आस-पास के लोग उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं और वह खुद भाग कर घर में छुपने की कोशिश करता है और नींद टूट जाती है। फिर उसने एक अच्छे दैवज्ञ से सलाह ली। स्वप्न का फल यही समझा गया कि उसकी पत्नी स्वस्थ हो जाएगी। यह बात अप्रैल 1980 की है। उसकी पत्नी आज भी जीवित और स्वस्थ है। लेकिन उस व्यक्ति का अचानक हृदय गति रुक जाने से जनवरी 1989 में देहांत हो गया।
इस तरह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन में आने वाली दुर्घटनाओं, उन्नति और शुभ समय के आगमन से संबंधित स्वप्न कई बार सच्चे साबित हो जाते हैं।
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